History

radharanimandir

卐 जैजै श्रीराधेराधे 卐
“”बरसानो जान्यो नहीं, रट्यो ना श्रीराधा नाम, तो तेने जान्यो कहा वृज को तत्व महान””
–यूँ तो सारा ब्रज मण्डल ही मन्दिरों की भूमि है पर श्रीधाम बरसाना में ब्रह्मांचल पर्वत के शिखर पर विराजमान ब्रजेश्वरी श्रीराधारानीजी के मंदिर की छटा निराली ही है। सौन्दर्य की दृष्टि से यह ब्रज का सबसे उत्कृष्ट मन्दिर है और हो भी क्यों न, यहां ब्रज की ब्रजवासियों की लाडिली सरकार जो विराजमान हैं। मन्दिर का यह नयनाभिराम स्वरूप एक दिन की कथा नहीं है, यह पांच शताब्दियों तक अलग-अलग श्रद्धालुओं द्वारा कराये गए निर्माणों का साझा परिणाम है। 

दक्षिण भारत से आये ब्रजाचार्य नारायण भट्ट (जोकि श्री नारदजी के अवतार थे) ने 1569 ईस्वी में इसी पर्वत से श्रीराधाजी के श्री विग्रह का प्राकट्य किया था। भट्ट जी ने श्रीजी की सेवा का दायित्व अपने शिष्य श्रीनारायण स्वामी को सौंपा था। कुछ समय तक स्वामीजी ने अपनी कुटिया में ही श्रीजी के विग्रह की सेवा पूजा की उसके बाद जो मन्दिर निर्माण की श्रृंखला शुरू हुई अब तक  चल रही है। वर्तमान में श्री नारायण स्वामीजी के वंशज गोस्वामी वृन्द सेवा/पूजा करने का दायित्व निर्वाध रुप से करते आ रहे हैं। मन्दिर के विकास क्रम के बारे में जानकारी लोक परम्परा में प्रचलित इन पंक्तियों से समझी जा सकती है।
श्रीभट्ट नारायण अति सरस वृजमंडल सो हेतु ठौर २ लीला करी।निकट बट संकेत

“प्रथम भवन बनजार विराजीं

फिर ठाकुर टांटिया विराजीं

*रूपराम विप्र कटारा
भुवन बनाया पुनि पग धारा*

चतुर्थ महल घासेरे बारे।आप विराजीं अति छवि धारे

पंचम महल सेंधिया राव है
भूमि दान करी श्रीलाडलीजी के नाम”

इसे विस्तार से समझाते हुए बरसाना के इतिहास हैं कि

 मंदिर का निर्माण

सबसे पहले लाखा नामक एक बनजारे ने यहाँ पहले मन्दिर का निर्माण कराया। छोटी सी तिबारी के अंदर बने इस मंदिर में सबसे पहले श्रीजी का विग्रह विराजमान किया गया। यह लाखा बंजारा सागर झील वाला लाखा बंजारा भी हो सकता है जिसके नाम पर सागर झील को लाखा बंजारा झील नाम दिया गया है। कालगणना और दानशीलता के आधार पर भी यह वही लाखा बंजारा प्रतीत होता है परंतु यह वही है ऐसा दावे के साथ कहना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि लाखा किसी व्यक्ति का नाम नहीं है जिस बनजारे के पास एक लाख जानवरों का रेवड़ होता था उसे ही लाखा कह दिया जाता था। इसलिए लाखा बनजारे कई हो सकते हैं।

इसके बाद टांटिया ठाकुर ने दूसरे मन्दिर का निर्माण कराया। टांटिया ठाकुर जाट राजा चूड़ामन के समकालीन था, इसका नाम श्रीलालजी था और टांटिया ठाकुर कहा जाता था। 1720 ईस्वी में यह चूड़ामन के भतीजे बदनसिंह के साथ जुड़ गया। सम्भव है इसी दौरान इसने मन्दिर बनवाया हो। यह मंदिर ब्रह्माजी जड़ स्वरूप व्रह्मा चल पर्वत के ऊपर स्थित है और भानगढ़ कहा जाता है। इस मंदिर में भी श्रीजी के विग्रह को विराजमान कराया गया और उनकी सेवा पूजा की गई। इस मंदिर के निर्माण के कुछ ही समय बाद संभवतः एक या दो दशक के बाद ही भरतपुर रियासत के राजपुरोहित रूपराम कटारा ने तीसरे मन्दिर का निर्माण कराया। यहाँ भी श्रीजी की सेवा अर्चना की गई। इसी शताब्दी के आखिरी दशक में घासेरे के राव शासक ने यहां चौथे मन्दिर का निर्माण कराया। यह मंदिर भानगढ़ के बगल में स्थित है। यहाँ भी श्रीराधारानी की सेवा पूजा हुई। बरसाना के युद्ध में जाट शासक के हारने के बाद यह क्षेत्र मुगलों के अधीन हो गया और शीघ्र ही मराठों और अंग्रेजों के आधिपत्य में आ गया। 1803 ईस्वी में अंग्रेजों द्वारा यह क्षेत्र सिंधिया को सौंप दिया। इस दौरान सिंधिया शासक ने यहाँ एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया और मन्दिर की व्यवस्था संचालन के लिए एक हजार बीघे जमीन भी दान की। यह वही मन्दिर गर्भ गृह है जिसमें वर्तमान में श्रीराधारानी विराजमान हैं। बाद में इस मंदिर को जीर्णोद्धार और नवीनीकरण सेठ हरगुलाल बेरीवाला द्वारा कराया गया। मंदिर के बाहरी दो जगमोहन एवम् शीर्ष स्त्भों का
विस्तार करते हुए एक विशाल
सत्संग हॉल का निर्माण ब्रज हरि
संकीर्तन मंडल नई दिल्ली के सहयोग से जानकीदास ने 1991 में पूर्ण कराया।

दो अन्य मन्दिर जहां नहीं विराजीं श्रीजी (श्रीराधारानी जी)

किशनगढ़ के राजा द्वारा विलासगढ़ पर एक मंदिर और बावड़ी बनवाई लेकिन श्रीजी उस मंदिर में नहीं गयीं। यह राजा नामी भक्त और चित्रकार सावंत सिंह भी हो सकते हैं या उनके कोई अन्य परिजन। इसी तरह जयपुर के राजा माधो सिंह द्वितीय ने दानगढ़ शिखर पर एक मंदिर का निर्माण कराया लेकिन श्रीजी वहां भी विराजमान नहीं हुई। बाद में उस मंदिर में कुशल बिहारी हंस बिहारी एवम् नृत्य बिहारी को विराजमान किया गया। 
*श्रीधाम बरसाना में श्री राधारानीजु और भगवान लीलाधारी श्री कृष्ण भगवान की लीलास्थली दर्शनीय हैं, यथा—
$ सांकरीखोर- जहाँ भगवान ने वृज गोपियों से दान (कर स्वरुप) लेकर मटकी फ़ोर लीलाओं का प्रादुर्भाब हुआ–
अरी मोहे देजा दधि को दान गुजरीया बरसाने बारी
ऐसा कहते थे गोपियों से ।
$ गहवर वन-ये स्थल श्री राधारानी जी का नित्यलीला (हृदय स्थल) स्थल है, इसको श्रीराधा रानीजी ने स्वयं सजाया सवारा था, इसको श्री राधारानीजी का निज वृंदावन भी वर्णित किया गया है,यहाँ अत्यन्त ही मनोहारी गहवर कुंड और ऋषि महात्माओं की तप्स्थली है।

radha rani mandir

श्री राधा रानी का अवतरण

  • राधा द्वापर युग में श्री वृषभानु के घर प्रगट होती हैं। कहते हैं कि एक बार श्रीराधा गोलोकविहारी से रूठ गईं। इसी समय गोप सुदामा प्रकट हुए। राधा का मान उनके लिए असह्य हो हो गया। उन्होंने श्रीराधा की भर्त्सना की, इससे कुपित होकर राधा ने कहा- सुदामा! तुम मेरे हृदय को सन्तप्त करते हुए असुर की भांति कार्य कर रहे हो, अतः तुम असुरयोनि को प्राप्त हो। सुदामा काँप उठे, बोले-गोलोकेश्वरी ! तुमने मुझे अपने शाप से नीचे गिरा दिया। मुझे असुरयोनि प्राप्ति का दुःख नहीं है, पर मैं कृष्ण वियोग से तप्त हो रहा हूँ। इस वियोग का तुम्हें अनुभव नहीं है अतः एक बार तुम भी इस दुःख का अनुभव करो। सुदूर द्वापर में श्रीकृष्ण के अवतरण के समय तुम भी अपनी सखियों के साथ गोप कन्या के रूप में जन्म लोगी और श्रीकृष्ण से विलग रहोगी। सुदामा को जाते देखकर श्रीराधा को अपनी त्रृटि का आभास हुआ और वे भय से कातर हो उठी। तब लीलाधारी कृष्ण ने उन्हें सांत्वना दी कि हे देवी ! यह शाप नहीं, अपितु वरदान है। इसी निमित्त से जगत में तुम्हारी मधुर लीला रस की सनातन धारा प्रवाहित होगी, जिसमे नहाकर जीव अनन्तकाल तक कृत्य-कृत्य होंगे। इस प्रकार पृथ्वी पर श्री राधा का अवतरण द्वापर में हुआ।

Shree Radha Rani ji's Genealogy, Shree Dham in Barsana

The details are as follows :-

Shree Radha Rani ji incarnated in the Suryavansh.

The first in his lineage-

• Maharaj Shree Neep Ju.
• Maharaj Shreejup Ju.
• Maharaj Shri Nripa daya Nidhi (who did penance for 13 years under the shelter of Shri giri raj Maharaj)
• Then his son Shri Mahi Bhanu ji name of his wife, There was Sukhda (grand mother of Shree
Radha rani ji), somewhere she was also named Sushma.
• Born in his house Shri Vrisha bhanu ji (father of Shree Radha Rani ji)
His wife, wife of religion, was Queen Sri Kirti da. Shri Shree Radha Rani ji, Bhadrapada Shukla Ashtami Arunodaya, Visakha Nakshatra, incarnated on Thursday at the place of Baba Shri Vrisha bhanuji.

* Bhadon Ashtami date light.
* Constellation Visakha Ruchir Mahari.
* Ja day birth Leo Sriradha.
* Kirat Veda Purana Agadha.
• Now ahead of his family—
• Shree Radha Rani’s uncle
Bhanu ji – Ratna bhanu – Subhanu
• Fufa and Buaji
Wish – Bhanu mudra
• Brother- Shridamaji
• Younger Sister– Anangmanjari
• Grandfather and Grandmother
Induji Mukhara Rani
• Mama shree and maternal uncle
Bhadra kirti – Maneka
Maha kirti – Shashthi
Chandra kirti – Gauri
• Mousa ji – Kush ji
• Mausi JI – Kirti mati

* *Shree radhe radhe * *

हमारे महाराज जी

radharanimandir

श्री गोस्वामी नारायण भट्ट जी

(संस्थापक पीठाधीस,ब्रीजाचार्य पीठ)
ऊँचा गाव,श्री धाम बरसाना, मथुरा ((उ0 प्र0) जन्म-सन 1488 गोलोकवाशी - सन- 1633
radharanimandir

श्री गोस्वामी रमानिवास भट्ट जी महाराज

(16वें पीठाधीस,ब्रीजाचार्य पीठ)
ऊँचा गाव,श्री धाम बरसाना, मथुरा ((उ0 प्र0) जन्म-सन 1930 गोलोकवाशी - सन- 1990
radharanimandir

श्री दीपक भट्ट जी महाराज

17वें पीठाधीस,ब्रीजाचार्य पीठ)
ऊँचा गाव,श्री धाम बरसाना, मथुरा ((उ0 प्र0) जन्म-सन 1959 गोलोकवाशी - सन- 2015